सात अक्टूबर को कलश स्थापन, शारदीय नवरात्र में डोली पर आ रही हैं माता, हाथी पर प्रस्थान -*
मां दुर्गा की उपासना का महापर्व शारदीय नवरात्र सात अक्टूबर गुरुवार से शुरू हो रहा है। इस वर्ष षष्ठी तिथि का क्षय होने से नवरात्र आठ ही दिन का रहेगा। 11 अक्टूबर को गज पूजा (विलवाभिमंत्रणम), 12 अक्टूबर को महा अष्टमी व्रत के साथ ही महारात्रि निशा पूजा और 14 अक्टूबर को महानवमी व्रत है। 15 अक्टूबर को अपराजिता पूजा के साथ विजयदशमी होगी। नवरात्र सात अक्टूबर से शुरू होकर 14 अक्टूबर को समाप्त होगा।
नई दिल्ली। मां दुर्गा की उपासना का महापर्व शारदीय नवरात्र सात अक्टूबर गुरुवार से शुरू हो रहा है। इस वर्ष षष्ठी तिथि का क्षय होने से नवरात्र आठ ही दिन का रहेगा। 11 अक्टूबर को गज पूजा (विलवाभिमंत्रणम), 12 अक्टूबर को महा अष्टमी व्रत के साथ ही महारात्रि निशा पूजा और 14 अक्टूबर को महानवमी व्रत है। 15 अक्टूबर को अपराजिता पूजा के साथ विजयदशमी होगी। नवरात्र सात अक्टूबर से शुरू होकर 14 अक्टूबर को समाप्त होगा।
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पंचम और छठे रूप की पूजा एक ही दिन
देवी के पंञ्चम रूप स्कन्दमाता तथा षष्ठ रूप कात्यायनी का पूजन एक ही दिन (11अक्टूबर ) किया जायेगा। अष्टमी का व्रत 13 अक्टूबर को किया जायेगा। माता का आगमन डोली पर हो रहा है। यह सामान्य फलदायक है, लेकिन दशमी शुक्रवार को होने से माता का प्रस्थान हाथी पर हो रहा है, जो शुभ फलदायक रहेगा। यह समस्त व्यक्तियों में सुख-समृद्धि और सुवृष्टि का सूचक है।
कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त
गुरुवार सात अक्टूबर को प्रतिपदा तिथि दिन में तीन बजकर 28 मिनट तक है। ऐसे में सूर्योदय से प्रतिपदा तीन बजकर 28 मिनट के भीतर कभी भी कलश स्थापना की जा सकती है। इसके लिए प्रात: छह बजकर 10 मिनट से छह बजकर 40 मिनट तक ( कन्या लग्न-स्वभाव लग्न में)। पुन: 11 बजकर 14 मिनट से दिन में एक-एक बजकर 19 मिनट तक (धनु लग्न-द्विस्भाव लग्न)। इसके साथ ही अभिजित मुहुर्त ( सुबह 11 बजकर 17 मिनट से-12 बजकर 23 मिनट तक)है। ये तीनों मुहूर्त कलश स्थापना के लिए प्रशस्त हैं।
ऐसे करें मां की पूजा-अर्चना
नवरात्र के दिनों में प्रतिदिन दुर्गाजी की आराधना अत्यंत फलदायी सिद्ध होती है। इन दिनों में सामर्थ्य के अनुसार व्रत करना चाहिए। मिट्टी या धातु के कलश की स्थापना करें। मां दुर्गा की एक चित्र या मूर्ति स्थापित करें और 'नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:, नम: प्रकृत्यै भद्रायै नियता: प्रणता: स्म ताम्' ध्यान करें। प्रतिदिन सुबह शाम घी का दीपक जलायें। फूलमाला चढ़ावें, धूपबत्ती दिखावे तथा फल और मिठाई का भोग लगावें। अंत में आरती करें। जो भक्त पाठ नहीं कर पा रहे है या हिंदी में कवच अर्गला व कीलक नहीं पढ़ पा रहे हैं, वे श्रद्धालु सिर्फ अष्टमी या नवमी को मां के मंदिर या पूजा पंडाल में भोग लगा दें। प्रतिदिन मां की प्रतिमा को पास घी का दीपक चलाकर फूलमाला चढ़ावें एवं धूपबती दिखकर आरती करें। यह कार्य श्रद्धा से करने से दुर्गासप्तशती के पाठ करने का फल मिलता है।
किस दिन किस देवी की होगी पूजा- अर्चना
सात अक्तूबर- मां शैलपुत्री पूजा व घटस्थापना
आठ अक्तूबर- मां ब्रह्मचारिणी पूजा
नौ अक्तूबर- मां चंद्रघंटा पूजा
10 अक्तूबर- मां कुष्मांडा पूजा
11 अक्तूबर- मां स्कंदमाता और मां कात्यायनी पूजा
12 अक्तूबर- मां कालरात्रि पूजा
13 अक्तूबर- मां महागौरी पूजा
14 अक्तूबर- मां सिद्धिदात्री पूजा।
मनोकामना के अनुसार करें पाठ
नवरात्र में मनोकामना के अनुसार पाठ करना चाहिए। शास्त्रों में फल सिद्धि के लिए एक पाठ, उपद्रवशांति के लिए तीन पाठ, सब प्रकार की शांति के लिए पांच पाठ, भयमुक्ति के लिए सात पाठ, यज्ञ फल प्राप्ति के लिए नौ पाठ का विधान है। यदि कोई नौ दिन पाठ करने में असमर्थ है चार, तीन, दो या एक दिन के लिए सात्विक उपवास के साथ पाठ कर सकता है। व्रती तेरह अध्याय का अपनी सुविधा अनुसार नौ दिनों में विभाजित कर लेते हैं। अंत में सिद्धकुंजिका स्रोत का पाठ करते है। देवी को रक्त कनेर (ओरहुल) का फूल विशेष प्रिय है। समान्यत: व्रती नवमी पूजन के पश्चात उसी दिन कुमारी पूजन व हवन कार्य कर सकते हैं।