Shibu Soren : दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने झारखंड को दी पहचान, 'गुरु जी' की संघर्ष गाथा

झारखंड के दिग्गज नेता और दिशोम गुरु शिबू सोरेन का निधन। उनके संघर्ष, आदिवासी अधिकारों के लिए लड़ाई और झारखंड राज्य की पहचान को गढ़ने में उनकी ऐतिहासिक भूमिका को जानें।

Shibu Soren : दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने झारखंड को दी पहचान, 'गुरु जी' की संघर्ष गाथा
शिबू सोरेन (फाइल फोटो)।

रांची। झारखंड की राजनीति और आदिवासी आंदोलन के स्तंभ, दिशोम गुरु शिबू सोरेन का निधन हो गया है। 'गुरु जी' के नाम से लोकप्रिय शिबू सोरेन न सिर्फ झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक थे, बल्कि उन्होंने आदिवासी समुदाय के अधिकारों के लिए लंबा संघर्ष किया।
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संघर्ष से नेतृत्व तक
शिबू सोरेन ने बहुत ही साधारण परिवार से उठकर झारखंड में आदिवासी पहचान और हक के लिए अपनी पूरी जिंदगी समर्पित की। उन्होंने भूमि अधिग्रहण, वन अधिकार, और आदिवासी स्वशासन जैसे मुद्दों पर केंद्र सरकार से भी टकराव मोल लिया। झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना कर उन्होंने आदिवासी अस्मिता को राजनीतिक मंच दिया। वे तीन बार केंद्र सरकार में मंत्री बने। झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में भी उन्होंने सेवा दी।
गरीबी और सामाजिक अन्याय के खिलाफ पूरे झारखंड में गूंजी आवाज
गरीबी और सामाजिक अन्याय के खिलाफ शिबू सोरेन की आवाज नेमरा गांव से निकलकर पूरे झारखंड में गूंजी। उन्होंने 1969-70 में नशाबंदी, साहूकारी और जमीन बेदखली के खिलाफ जनांदोलन शुरू किया, जिसने उन्हें आदिवासी समाज का नायक बना दिया।
ना टूटे-ना झुके
1980 के दशक में शिबू सोरेन ने बिनोद बिहारी महतो के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना किया। वर्ष 1987 में झामुमो की विशाल जनसभा में उन्होंने अलग झारखंड राज्य के लिए निर्णायक लड़ाई का आह्वान किया। 1989 में उन्होंने विधायक पद से इस्तीफा देकर केंद्र सरकार को 30 मई तक अलग राज्य की मांग पूरी करने का अल्टीमेटम दिया। छोटानागपुर अलग संघर्ष समिति के सदस्य के रूप में उन्होंने साहूकारों और सूदखोरों के खिलाफ आंदोलन को तेज किया।
झारखंड क्षेत्र स्वशासी परिषद का गठन
झारखंड क्षेत्र स्वशासी परिषद के 180 सदस्यों में से 89 के साथ वे इस संघर्ष में शामिल रहे। उनकी यह लड़ाई 2000 में झारखंड राज्य के गठन के साथ पूरी हुई, जो उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि थी। शिबू सोरेन का राजनीतिक जीवन उतार-चढ़ाव से भरा रहा। 
दो बार झारखंड के सीएम व सेंट्रल मिनिस्टर बने
झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक शिबू सोरेन तीन बार झारखंड के सीएम पद पर आसीन रहे हैं। उनका राजनीतिक जीवन उतार-चढ़ाव भरा रहा है। हर कार्यकाल की अपनी अलग परिस्थितियां रही हैं। गुरुजी आदिवासियों के बीच देश के सबसे प्रिय और सम्मानित नेता थे। 2004 में यूपीए-1 सरकार में शिबू सोरेन को कोयला मंत्री बनाया गया। एक पुराने हत्या के मामले में विवादों के कारण उन्हें पद छोड़ना पड़ा। 2006 में कोर्ट ने उन्हें सजा सुनाई, हालांकि बाद में वे बरी हुए।उनके समर्थक उन्हें आदिवासियों का मसीहा मानते हैं, जिन्होंने अपनी जवानी झारखंड की अस्मिता के लिए समर्पित कर दी।
दिशोम गुरु की विरासत 
शिबू सोरेन को लोग ‘दिशोम गुरु’ इसलिए कहते हैं, क्योंकि उन्होंने आदिवासी समाज को उनकी पहचान और अधिकार दिलाने के लिए जीवनभर संघर्ष किया। झारखंड आंदोलनकारी चिह्नितीकरण आयोग द्वारा उन्हें आंदोलनकारी घोषित किया जाना उनके त्याग और बलिदान की स्वीकृति है।शिबू सोरेन का जीवन एक ऐसी कहानी है, जो बताती है कि साधारण शुरुआत से भी असाधारण उपलब्धियां हासिल की जा सकती हैं। उनकी तपस्या, संघर्ष और समर्पण ने झारखंड को नयी दिशा दी। शिबू सोरेन की सबसे बड़ी उपलब्धि झारखंड राज्य की स्थापना मानी जाती है, जो 2000 में बिहार से अलग होकर बना। उन्होंने इस राज्य को एक पहचान, एक आवाज़ दी।
Shibu Soren की राजनीतिक यात्रा
1973 में झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया
1980 में लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए
1986 में झामुमो के महासिचव बने
1989 में लोकसभा के लिए दूसरी बार चुने गये
1991 में तीसरी बार लोकसभा के लिए निर्वाचित
1996 में चौथी बार लोकसभा के सदस्य बने
आठ जुलाई 1998 से 18 जुलाई 2001 तक राज्यसभा के सदस्य रहे
10 अप्रैल 2002 से दो जून 2002 तक राज्यसभा के सदस्य रहे
2002 में पांचवीं बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए
मई 2004 में छठी बार लोकसभा के सदस्य बने
मई 2004 से 10 मार्च 2005 तक सेंट्रल में कोयला मंत्री रहे
जुलाई 2004 में केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया
दो मार्च 2005 से 11 मार्च 2005 तक झारखंड के मुख्यमंत्री रहे
29 जनवरी 2006 से 28 नवंबर 2006 तक केंद्र में कोयला मंत्री बने
26 नवंबर 2006 को केंद्रीय मंत्रिपरिषद से इस्तीफा देना पड़ा
2009 में 15वीं लोकसभा में सातवीं वीं बार सांसद चुने गये
31 अगस्त 2009 को कोयला और स्टील की स्टैंडिंग कमेटी के सदस्य बने
23 सितंबर 2009 को वेतन और भत्तों की संयुक्त समिति के सदस्य बने
मई 2014 में आठवीं बार लोकसभा के लिए चुने गये
सात अक्टूबर 2014 में खाद्य आपूर्ति और उपभोक्ता मामलों की स्थायी समिति के सदस्य बने
स्टील मंत्रालय की सलाहकार समिति के सदस्य भी रहे