विजयादशमी 2021 : मां दुर्गा की विदाई, दुगोत्सव संपन्न, महिलाओं ने खेला 'सिंदूर खेला'

कोयला राजधानी धनबाद में शुक्रवार को दुगोत्सव भी संपन्न हो गया। मां दुर्गा की पूजा के लिए जिले के विभिन्न पंडालों में स्थापित मां दुर्गा की प्रतिमा का सिर्जन किया गया। इस मौके पर सिंदूर खेला की रश्मअदायगी हुई। महिलाओं ने एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर खूब 'सिंदूर खेला' का खेल खेला।  मां दुर्गा की विदाई के समय महिलाओं के आंख नम थे। नावाडीह स्थित पूजा पंडाल में सिंदूर खेला कार्यक्रम में प्रदेश कार्यसमिति सदस्य रागिनी सिंह सम्मिलित हुई। 

विजयादशमी 2021 : मां दुर्गा की विदाई, दुगोत्सव संपन्न, महिलाओं ने खेला 'सिंदूर खेला'

धनबाद। कोयला राजधानी धनबाद में शुक्रवार को दुगोत्सव भी संपन्न हो गया। मां दुर्गा की पूजा के लिए जिले के विभिन्न पंडालों में स्थापित मां दुर्गा की प्रतिमा का सिर्जन किया गया। इस मौके पर सिंदूर खेला की रश्मअदायगी हुई। महिलाओं ने एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर खूब 'सिंदूर खेला' का खेल खेला।  मां दुर्गा की विदाई के समय महिलाओं के आंख नम थे। नावाडीह स्थित पूजा पंडाल में सिंदूर खेला कार्यक्रम में प्रदेश कार्यसमिति सदस्य रागिनी सिंह सम्मिलित हुई। 

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सदियों से चली आ रही 'सिंदूर खेला' की परंपरा

विजयादशमी को लेकर देश के अलग-अलग जगह पर अलग-अलग मान्याताएं हैं। इस दिन बंगाल में सिंदूर खेलने की परंपरा होती है, जिसे 'सिंदूर खेला' के नाम से जाना जाता है। शादीशुदा महिलाएं पंडालों में मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित करती हैं। विजयादशमी पर सिंदूर लगाने की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। मुख्य रुप से बंगाली समाज में 'सिन्दूर खेला' का बहुत महत्व है। ऐसा माना जाता है कि यह परंपरा लगभग चार सौ साल पुरानी है। धनबाद पर बंगाल की संस्कृति का प्रभाव है। इस कारण विजयादशमी पर यहां की महिलाएं सिंदूर खेला की रश्मअदायगी करती हैं।

सिंदूर खेला का महत्व

सिंदूर खेला शादीशुदा महिलाओं का त्योहार माना जाता है। हिन्दू धर्म में सिंदूर का बहुत महत्व होता है, इसे महिलाओं के सुहाग की निशानी माना गया है। मां दुर्गा को सिंदूर लगाने का बड़ा महत्व है। कहते हैं कि सिंदूर मां दुर्गा के शादीशुदा होने का प्रतीक माना जाता है।इसलिए दशमी वाले दिन सुहागिन महिलाएं लाल रंग की साड़ी पहनती है।  मांग में ढेर सारा सिंदूर भर कर पंडाल जाती है, जहां वे मां दुर्गा को उलूध्वनी निकालकर विदा करती हैं। सभी शादीशुदा महिलाएं मां दुर्गा को सिंदूर लगाती हैं। उसके बाद मां को पान और मिठाई का भोग लगाती है, और आखिर में एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं। सिन्दूर लगाने की इसी प्रथा को सिन्दूर खेला कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो महिलाएं सिंदूर खेला में शामिल होती हैं, उनके पति की उम्र लम्बी होती है और उनका सुहाग सलामत रहता है।

ऐसे होता है सिंदूर खेला

विजयादशमी के दिन मां दुर्गा को विसर्जन से पहले उन्हें दुल्हन की तरह सजाया जाता है। सिंदूर खेला में सबसे पहले पान के पत्ते से मां दुर्गा के गालों को स्पर्श किया जाता है। फिर उनकी मांग और माथे पर सिंदूर लगाते हैं। इसके बाद माता रानी को मिठाई का भोग लगाते हैं। और आखिर में सभी महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर खेलकर पति के लम्बे उम्र और उनकी खुशहाली की कामना करती हैं। लोग ढाक की ताल पर नाचते झूमते मां दुर्गा को विसर्जन के लिए ले जाते हैं। अगले साल फिर से आने की प्रार्थना करते हैं।

मान्यता

मान्यता है कि मां दुर्गा साल में एक बार 10 दिनों के लिए अपने मायके आती हैं। कहते हैं कि जिस तरह से एक लड़की जब अपने मायके आती है, तो उसे खूब प्यार मिलता है, उसकी सेवा की जाती है। उसी तरह माँ दुर्गा के लिए भी जगह-जगह पंडाल लगते हैं। उनकी सेवा की जाती है। जब मां दुर्गा मायके से विदा होकर ससुराल जाती हैं, तो उनकी मांग को सिंदूर से भर कर ही उन्हें विदाई देते हैं।