पश्चिम बंगाल: चुनाव के बाद हिंसा पर कलकत्ता हाई कोर्ट सख्त, सभी पीड़ितों के केस दर्ज करने का आदेश
विधानसभा चुनाव के बाद स्टेट में हुई हिंसा के मामले में सरकार के रवैये पर कलकत्ता हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कड़ी नाराजगी जतायी है। हाई कोर्ट ने पुलिस को आदेश दिया कि वह हिंसा पीडि़तों के सभी मामले FIRके रूप में दर्ज करे। कोर्ट ने स्टेट गवर्नमेंट को सभी पीड़ितों (घायलों) के लिए चिकित्सा सुविधा सुनिश्चित करने और राशन कार्ड न होने पर भी प्रभावितों के लिए राशन सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया है।
- सरकार के रवैये से कोर्ट नाराज, कहा- पीड़ितों का भरोसा सरकार से हटा
कोलकाता। विधानसभा चुनाव के बाद स्टेट में हुई हिंसा के मामले में सरकार के रवैये पर कलकत्ता हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कड़ी नाराजगी जतायी है।हाई कोर्ट ने पुलिस को आदेश दिया कि वह हिंसा पीडि़तों के सभी मामले FIRके रूप में दर्ज करे। कोर्ट ने स्टेट गवर्नमेंट को सभी पीड़ितों (घायलों) के लिए चिकित्सा सुविधा सुनिश्चित करने और राशन कार्ड न होने पर भी प्रभावितों के लिए राशन सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया है।
हाई कोर्ट ने सरकार को गलत ठहराते हुए कहा कि जब हिंसा हो रही थी और लोग मारे जा रहे थे तो सरकार इसे नकार रही थी और वह गलत थी। हिंसा का खामियाजा भुगतने वाले लोगों के बीच बंगाल सरकार विश्वास का माहौल बनाने में नाकाम रही है।कोर्ट ने बीजेपी कार्यकर्ता अभिजीत सरकार की बॉडी का कोलकाता के कमांड अस्पताल में फिर से पोस्टमार्टम कराने का आदेश भी दिया, जिनकी चुनाव के बाद की हिंसा में भीड़ द्वारा कथित रूप से मर्डर कर दी गई थी। कोर्ट ने हिंसा की जांच के लिए मौके पर गए एनएचआरसी के सदस्यों पर 29 जून को कोलकाता के जादवपुर इलाके में हुए हमले पर भी सख्त रवैया अपनाया है।
हाई कोर्ट ने टीम के दौरे के दौरान बाधाओं को रोकने में विफल रहने के लिए दक्षिण कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राशिद मुनीर खान को कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए पूछा है कि क्यों न उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू की जाए? बेंच ही राज्य के मुख्य सचिव को चुनाव बाद हुई हिंसा से संबंधित सभी दस्तावेजों को सुरक्षित रखने के भी निर्देश दिये हैं। एनएचआरसी समिति द्वारा प्रस्तुत अंतरिम रिपोर्ट के आधार पर बेंच ने यह निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने कुछ डीएम व एसपी को भी नोटिस जारी किया है कि हिंसा को रोकने में विफल रहने पर उनके खिलाफ अवमानना का मामला क्यों न चलाया जाए।हिंसा की जांच के लिए हाई कोर्ट के निर्देश पर गठित एनएचआरसी की एक समिति द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर कोर्ट ने यह निर्देश दिया है।
एनएचआरसी जांच को 13 जुलाई तक बढ़ाया
हाई कोर्ट ने चुनाव बाद हिंसा की एनएचआरसी की जांच को 13 जुलाई तक बढ़ा दिया है। इस मामले की अगली सुनवाई भी अब 13 जुलाई को ही होगी। कोर्ट ने राज्य सरकार को जो भी निर्देश दिए हैं, उसकी कार्रवाई के संबंध में 13 जुलाई को स्टेटस रिपोर्ट भी पेश करने का निर्देश दिया है। उल्लेखनीय है कि हाई कोर्ट के आदेश पर मानवाधिकार उल्लंघनों की जांच कर रही एनएचआरसी की समिति ने इससे पहले हिंसा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा और पीडि़तों से बातचीत के बाद 30 जून को पिछली सुनवाई के दौरान बेंच के समक्ष सीलबंद लिफाफे में अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट सौंपी थी।
कोर्ट ने हिंसा की बात को माना
सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने चुनाव के बाद हिंसा की बात को माना है। कोर्ट ने माना की स्टेट गवनर्मेंटर गलती पर है और मुकर रही है, जब लोग मर रहे थे और नाबालिग लड़कियों को भी नहीं बख्शा गया। कई लोगों की संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया गया। कई लोगों को अपना घर-बार छोड़ना पड़ा, यहां तक कि दूसरे राज्य जाना पड़ा। एक्टिंग चीफ जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस आई.पी. मुखर्जी, हरीश टंडन, सौमेन सेन और सुब्रत तालुकदार की पांच सदस्यीय बेंच ने कहा कि एनएचआरसी के अध्यक्ष द्वारा गठित समिति की रिपोर्ट के अवलोकन से प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता द्वारा लिया गया स्टैंड साबित होता है कि चुनाव के बाद हिंसा हुई है। रिपोर्ट में कार्यकर्ताओं की बेरहमी से हत्या, महिलाओं के साथ दुष्कर्म व बर्बरता आदि का जिक्र है, जिसका याचिकाकर्ता द्वारा दावा किया गया है।
पुलिस और प्रशानिक अफसरों को सख्त निर्देश
चुनाव बाद हुई हिंसा पर NHRC की रिपोर्ट पढ़ने के बाद हाईकोर्ट ने पुलिस को निर्देश दिए कि पहले जो भी शिकायतें आई हों, उन सभी मामलों में केस दर्ज करे। मानवाधिकार आयोग या दूसरे आयोगों के पास की गई शिकायतों पर भी FIR दर्ज की जाए। सभी पीड़ितों के बयान रिकॉर्ड किए जाएं।कोर्ट ने बंगाल के मुख्य सचिव को निर्देश दिए कि वे पुलिस की स्पेशल ब्रांच और इंटेलिजेंस ब्रांच में हुई सभी लिखा-पढ़ी को सुरक्षित रखें। अलग-अलग कंट्रोल रूम में दर्ज लॉग्स को भी सेफ किया जाए। इसके अलावा दो मई से अब तक के जो भी दस्तावेज हैं, उन्हें तुरंत कमेटी के सदस्यों के दस्तखत के बाद एक सीलबंद लिफाफे में रखा जाए। इस मामले में किसी भी तरह की देरी नहीं होनी चाहिए।
उल्लेखनीय है कि हाई कोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस राजेश बिंदल की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय बेंच बंगाल में चुनाव के बाद हिंसा का आरोप लगाने वाली कई जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। आयोग की टीम ने मंगलवार को राज्य का दौरा खत्म किया था। अब उसे 13 जुलाई तक जांच की अनुमति मिल गई है। इससे पहले गुरुवार को बंगाल में हिंसा का मामला सुप्रीम कोर्ट में भी उठा था। बंगाल में विधानसभा चुनाव के बाद हुई हिंसा की स्वतंत्र जांच की मांग को लेकर दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र व बंगाल सरकार को नोटिस भेजा। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में चुनाव आयोग को भी नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।