झारखंड: नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज की नोटिफिकेशन पर रोक, CM हेमंत सोरेन का आदेश
झारखंड के लातेहार स्थित नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज लातेहार का अवधि विस्तार नहीं होगा। सीएम हेमंत सोरेन ने इस आशय का आदेश दिया है। सीएम हेमंत सोरेन ने फायरिंग रेंज की अधिसूचना पर रोक लगा दी है। सरकार के इस निर्णय पर जनजातीय समुदाय के लोगों में काफी खुशी है। विगत 28 साल से इसकी नोटिफकेशन रद्द करने की मांग को लेकर आंदोलन हो रहा है।
- जनजातीय समुदाय में खुशी
- 30 वर्षों से चल रहा था आंदोलन
रांची। झारखंड के लातेहार स्थित नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज लातेहार का अवधि विस्तार नहीं होगा। सीएम हेमंत सोरेन ने इस आशय का आदेश दिया है। सीएम हेमंत सोरेन ने फायरिंग रेंज की अधिसूचना पर रोक लगा दी है। सरकार के इस निर्णय पर जनजातीय समुदाय के लोगों में काफी खुशी है। विगत 28 साल से इसकी नोटिफकेशन रद्द करने की मांग को लेकर आंदोलन हो रहा है।
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सीएम ने फायरिंग रेंज के अवधि विस्तार के प्रोपोजल को विचाराधीन प्रतीत नहीं होने के बिंदु पर अनुमोदन दिया है। 1964 में शुरू हुए नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज का तत्कालीन बिहार सरकार द्वारा 1999 में अवधि विस्तार किया गया था। मुख्यमंत्री ने जनहित को ध्यान में रखते हुए नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज को फिर से नोटिफिकेशन नहीं करने के प्रोपोजल पर सहमति प्रदान की है।
39 राजस्व गांव के ग्रामीणों ने गवर्नर व सीएम को सौंपा था ज्ञापन
नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के विरोध में लातेहार जिला के करीब 39 राजस्व गांवों द्वारा आमसभा के माध्यम से गवर्नर व सीएम को ज्ञापन सौंपा गया था। इसमें नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज से प्रभावित जनता द्वारा बताया गया था कि लातेहार और गुमला जिला पांचवी अनुसूची के अन्तर्गत आता है। यहां पेसा एक्ट 1996 लागू है। इसके तहत ग्राम सभा को संवैधानिक अधिकार प्राप्त है। इसी के तहत नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के प्रभावित इलाके के ग्राम प्रधानों ने प्रभावित जनता की मांग पर ग्राम सभा का आयोजन कर नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के लिए गांव की सीमा के अंदर की जमीन सेना के फायरिंग अभ्यास के लिए उपलब्ध नहीं कराने का निर्णय लिया था।
30 वर्ष से हो रहा आंदोलन
झारखंड की राजधानी रांची से 170 किलोमीटर दूर छोटानागपुर की रानी नाम से प्रसिद्ध नेतरहाट के टुटुवापानी नामक स्थान में जल, जंगल, जमीन के लिए, लातेहार और गुमला के 245 गांव के हजारों आदिवासी पिछले लगभग 30 साल से नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज की नोटिफिकेशन रद्द करने की मांग को लेकर आंदोलन पर थे। 1994 से हर वर्ष 22-23 मार्च को विरोध होता रहा है। वर्ष 1966 से सेना रुटीन तोपाभ्यास करती आ रही थी। लातेहार व गुमला जिला के 157 मौजों के 245 गांव की 1471 वर्ग किलोमीटर भूमि को अधिसूचित किया गया था। 1991-92 के बाद गांवों की संख्या एवं क्षेत्र का विस्तार किए जाने का विरोध व्यापक रूप से शुरू हुआ।
.गांव की आवाज आंदोलन में बदल गयी
दिसंबर 1993 में पायलट प्रोजेक्ट नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज विरोधी जन संघर्ष समिति नाम से एक संगठन बनाया गया। वर्ष 1994 में 22 से 27 मार्च के बीच आर्मी का रूटीन तोपाभ्यास तय था। 1991-92 व 1993 की नोटिफिकेशन में बढ़ाई गयी। गांवों की संख्या को लेकर लोगों का दबा आक्रोश बाहर आया। 20 मार्च से ही जन संघर्ष समिति के बैनर तले फायरिंग रेंज के विरोध में लोगों की भारी भीड़ इकट्ठा होने लगी। एक सप्ताह तक चले इस जन-आंदोलन में सवा लाख ग्रामीण दिन-रात डटे रहे। आर्मी को 1994 में ग्रामीणों के दबाव पर अपनी गाड़ियों व तोपवाहन को लेकर वापस जाना पड़ा।
आंदोलन में कई दिग्गज शामिल हुए
नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज की नोटिफिकेशन रद्द करने के आंदोलन में देश भर से कई हस्तियों ने अपनी सहभागिता निभाई। कई पत्रकार से लेकर लेखक भी इस आंदोलन में शामिल रहे है। इसी वर्ष किसान नेता राकेश टिकैत व माले एमएलए विनोद सिंह ने 22 मार्च को नेतरहाट पहुंच कर ग्रामीणों का साथ दिया था।