“आरएसएस व्यक्तियों का संगठन है, संस्था नहीं” — मोहन भागवत ने पंजीकरण विवाद पर दिया जवाब

मोहन भागवत ने कहा—आरएसएस को व्यक्तियों के संगठन के रूप में मान्यता प्राप्त है; पंजीकरण, तिरंगा व कांग्रेस के आरोपों पर दिया करारा जवाब।

“आरएसएस व्यक्तियों का संगठन है, संस्था नहीं” — मोहन भागवत ने पंजीकरण विवाद पर दिया जवाब
संघ यात्रा के 100 वर्ष - नये क्षितिज ।
  • आरएसएस को व्यक्तियों के निकाय के रूप में मान्यता प्राप्त 
  • भगवा का सम्मान, तिरंगे का भी सम्मान
  • भागवत ने पाकिस्तान को कड़ा संदेश दिया; राष्ट्रहित को सर्वोपरि ठहराया

नई दिल्ली। आरएसएस पर बिना पंजीकरण के काम करने के आरोपों पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने साफ और निर्णायक टिप्पणी की है। रविवार को आरएसएस के सौ वर्ष पूरे होने के मौके पर आयोजित आंतरिक प्रश्नोत्तर सत्र में भागवत ने कहा कि आरएसएस को व्यक्तियों के संगठन के रूप में स्वीकार किया गया है और यह मान्यता अदालतों तथा आयकर विभाग द्वारा भी मिल चुकी है।

यह भी पढ़ें:धनबाद से उठी नई सामाजिक क्रांति की लहर! ‘नेशनल यूथ फेडरेशन’ का गठन, धर्मेन्द्र सिंह बने राष्ट्रीय अध्यक्ष

भागवत ने कहा — “हमें तीन बार प्रतिबंधित किया गया, अगर हमारा अस्तित्व न होता तो किस पर प्रतिबंध लगाया जाता?” उन्होंने पंजीकरण के बारे में पूछे जा रहे सवालों को खारिज किया और स्पष्ट किया कि स्वतंत्रता के पहले की परिस्थितियाँ अलग थीं तथा आजादी के बाद रजिस्ट्रेशन अनिवार्य नहीं है।भागवत ने पंजीकरण के साथ-साथ तिरंगे और भगवा ध्वज के संबंध में भी अपना रुख स्पष्ट किया।

उन्होंने कहा कि आरएसएस में भगवा को गुरु की तरह माना जाता है, पर साथ ही संगठन भारतीय तिरंगे का भी गहरा सम्मान करता है और हमेशा उसकी रक्षा करता है। “हम अपने तिरंगे का सम्मान करते हैं और उसकी रक्षा करते हैं,” भागवत ने जोर देकर कहा। कांग्रेस की ओर से उठाये गये मांग—जैसे आरएसएस पर प्रतिबंध की अपील और संगठन की पंजीकरण संख्या व फंडिंग के स्रोत पर सवाल—को भागवत ने असंगत बताया।

उन्होंने कहा कि यदि कोई संगठन राष्ट्रहित वाली नीतियों का समर्थन करता है तो वह राजनीतिक दलों का पक्ष नहीं लेता; आरएसएस स्वयं राजनीति में भाग नहीं लेता बल्कि राष्ट्रहित से जुड़ी नीतियों का समर्थन करता है। “हम वोट की राजनीति या चुनावी राजनीति में शामिल नहीं होते। हमारा काम समाज को एकजुट करना है,” उन्होंने कहा।भागवत ने अयोध्या के राम जन्मभूमि आंदोलन का उदाहरण देते हुए कहा कि संघ के स्वयंसेवक उस आंदोलन के समर्थन में खड़े रहे और यदि किसी भी पार्टी ने देशहित में किसी मुहिम का समर्थन किया है तो संघ भी उस नीति के साथ खड़ा रहा। “हमारा किसी एक पार्टी के साथ विशेष लगाव नहीं है — कोई भी दल हमारा नहीं और सभी दल हमारे हैं, क्योंकि वे भारतीय दल हैं।”

सामुदायिक समावेश के सवाल पर भागवत ने कहा कि संघ सभी समुदायों का स्वागत करता है — मुस्लिम, ईसाई और अन्य — बशर्ते वे खुद को ‘भारत माता के पुत्र’ और व्यापक हिंदू समाज के हिस्से के रूप में पहचानें। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि संघ किसी सदस्य को जाति या धर्म के आधार पर टोकता या वर्गीकृत नहीं करता; संघ में शामिल होने वाले लोगों से अलग पहचान को बाहर रखने की शर्त होती है। अंततः भागवत ने विदेश नीति के संदर्भ में पाकिस्तान को लेकर कड़ा संदेश देते हुए कहा कि पड़ोसी देश यदि अपने तौर-तरीकों में सुधार नहीं करता तो उसे वास्तविक सबक सिखाना होगा। उन्होंने 1971 के युद्ध का संदर्भ देते हुए कहा कि बातचीत से बेहतर सहयोग है, पर यदि आवश्यक हुआ तो वह भाषा अपनानी होगी जो सामने वाला समझे — और हर हाल में उसे करारा जवाब देना होगा।

भागवत की ये टिप्पणियां उस समय आई हैं जब राजनीतिक रूप से आरएसएस की गतिविधियों और उसकी भूमिका पर बहस चल रही है। भागवत ने अपने संबोधन में बार-बार राष्ट्रहित और सामाजिक एकता पर ज़ोर दिया तथा कहा कि संघ का उद्देश्य समाज को जोड़ना है, न कि विभाजित करना।