- बिरसा मुंडा के वंशजों ने द्रौपदी मुर्मु का पांव धोया
रांची। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने मंगलवार को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ संघर्ष कर अमर हुए धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की जन्मस्थली खूंटी के उलिहातू पहुंची। आजादी के बाद पहली बार किसी राष्ट्रपति के कदम यहां पड़े थे। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने भगवान बिरसा मुंडा के गांव उलिहातू में उनकी प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की।
बिरसा मुंडा के वंशजों ने राष्ट्रपति की खुले मन से अगवानी की। सुखराम मुंडा ( भगवान बिरसा मुंडा के पोत) सबसे आगे थे। नजर पड़ते ही राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने उनसे मुंडारी में पूछा - आम चिलका... (कैसे हैं आप)। मुंडा ने भी जवाब देते हुए कुशलक्षेम पूछा। वंशजों ने कांसे की थाली में उनके पांव पखारे। भीतर पारंपरिक रीति-रिवाज से जेठा पाहन पूजापाठ के लिए तैयार थे। जनेऊ धारण किए हुए सुखराम मुंडा के पुत्र जंगल सिंह मुंडा सबको चंदन का तिलक लगा रहे थे। पूजापाठ के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु जब बाहर आईं तो बिरसा के सभी वंशज मौजूद थे।
सुखराम मुंडा ने इस मौके पर महामहिम को अपनी समस्याओं की ओर ध्यान दिलाया। उन्होंने कहा कि परेशानी बहुत है। मकान नहीं है। पढ़ाई-लिखाई की व्यवस्था ठीक नहीं है। बच्चों के लिए सहायता की गुहार लगाई। गांव में हाई स्कूल चल रहा है, उसे प्लस टू करने का आग्रह किया। छत मिल जाता तो अच्छा होता। सुखराम ने कहा कि ऐसा पहली बार हुआ है कि राष्ट्रपति खुद चलकर आईं हैं उलिहातू। इससे बड़ा सम्मान और क्या हो सकता है। इससे बढ़कर भी खुशी की बात है कि एक आदिवासी आज देश के राष्ट्रपति पद पर विराजमान हैं।
द्रौपदी मुर्मु का स्वागत
सुखराम मुंडा की पत्नी लखीमनी, पुत्र बुधराम, जंगल सिंह मुंडा और उनकी पत्नी गांगे मुंडा, कानू मुंडा और सुभद्रा मुंडा ने बारी-बारी से राष्ट्रपति का अभिवादन किया। वंशजों ने उन्हें लाल पाड़ का गमछा उपहार स्वरूप सौंपा। राष्ट्रपति ने उन्हें धोती, साड़ी और कुर्ता देकर सम्मानित किया। भरोसा दिलाया कि सभी समस्याओं का भी समाधान होगा। राष्ट्रपति लगभग 20 मिनट वंशजों के साथ रहीं। इस दौरान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, केंद्रीय शिक्षा राज्यमंत्री अन्नपूर्णा देवी भी मौजूद थीं।
माथे पर चंदन और तन पर जनेऊ
वैष्णव परंपरा के वाहक बिरसाइत पांव में चप्पल नहीं पहनते। मांसाहार का सेवन नहीं करते। माथे पर चंदन लगाते हैं और वैष्णव परंपरा के वाहक हैं। ये बिरसा धर्म को मानते हैं। तन पर जनेऊ धारण करते हैं। आचार, विचार और व्यवहार में संत सरीखे। बिरसा धर्म को मानने वालों की कई टोलियां बंदगांव, सोनुवां, गुदड़ी, रनिया इलाके से पैदल चलकर उलिहातू पहुंची थी। हर वर्ष 15 नवंबर और नौ जून (भगवान बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि) को ये उलिहातू अवश्य आते हैं। सामूहिक प्रार्थना करते हैं और फिर वापस लौट जाते हैं। न कोई तामझाम, न कोई दिखावा। दो दिन आने में लगता है उलिहातू। साथ में सूखा भोजन रखते हैं। जहां भूख लगी, टोली पूजापाठ कर भोजन ग्रहण कर लेती है। फिर आगे का रास्ता तय होता है।
राष्ट्रपति ने लुगनी मुंडा के पुत्र के शिक्षा का उठाया बीड़ा
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु दिव्यांग लुगनी मुंडा के पुत्र दिलीप मुंडा के शिक्षा का पूरा खर्च उठाएगी। मंगलवार को खूंटी के उलिहातू में उनकी मां दिव्यांग लुगनी मुंडा से मुलाकात कर उन्होंने यह घोषणा की। उन्होंने झारखंड स्थापना दिवस की बधाई दी। ट्वीट किया- जोहार झारखंड! उलिहातू से राज्य स्थापना दिवस पर मैं झारखंड के सभी निवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं देती हूं। मैं चाहती हूं कि झारखंड के लोग अपनी संस्कृति, परंपराओं और रीति-रिवाजों को संजोते हुए पर्यावरण अनुकूल विकास के नए आयाम स्थापित करें।
जोहार झारखंड! उलिहातू आकर धन्य महसूस कर रही हूं
जनजातीय समुदायों ने स्वाधीनता संग्राम में महान योगदान दिया। भगवान बिरसा मुंडा के गांव उलिहातू में जाकर उनकी प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित करने का मुझे सौभाग्य मिला। भगवान बिरसा की जयंती के दिन, उनकी प्रतिमा का दर्शन कर मैं स्वयं को धन्य महसूस कर रही हूं। उनके जन्म और कर्म से जुड़े स्थानों पर जाना मेरे लिए तीर्थयात्रा के समान है। मैं सभी ज्ञात-अज्ञात जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों, वीरों-वीरांगनाओं को नमन करती हूं। आजादी के बाद से देश की विकास यात्रा में जनजातीय लोगों का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनके विकास और समृद्धि के लिए मेरी शुभकामनाएं! जनजातीय गौरव दिवस पर सभी देशवासियों, विशेषकर जनजातीय समाज के भाइयों और बहनों को मैं बधाई देती हूं। जनजातीय समुदायों ने अपनी कला, शिल्प और कठिन परिश्रम से राष्ट्र के जीवन को समृद्ध किया है। उनकी जीवनशैली, विश्व समुदाय को प्रकृति के संवर्धन की शिक्षा प्रदान करती है।
जनजातीय समुदायों ने भी दिया है बलिदान
राष्ट्रपति ने कहा कि जनजातीय समुदायों ने स्वाधीनता संग्राम में महान योगदान दिया। मैं सभी ज्ञात-अज्ञात जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों, वीरों-वीरांगनाओं को नमन करती हूं। आजादी के बाद से देश की विकास-यात्रा में जनजातीय लोगों का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनके विकास और समृद्धि के लिए मेरी शुभकामनाएं!
बिरसा मुंडा के गांव उलिहातू
स्वतंत्रता सेनानी और उलगुलान के नायक धरती आबा बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड के खूंटी जिला स्थित उलिहातू गांव में हुआ था। 15 नवंबर 2000 को झारखंड का अलग राज्य के रूप में गठन हुआ। इस दिन को बिरसा मुंडा की जयंती के साथ-साथ झारखंड राज्य स्थापना दिवस के तौर पर भी मनाया जाता है।