हिमाचल प्रदेश के रोहतांग में बना वर्ल्ड  में सबसे लंबा राजमार्ग टनल

अटल टनल वर्ल्ड  में सबसे लंबी राजमार्ग टनल है। 9.02 लंबी सुरंग (टनल) मनाली को सालों भर लाहौल स्पीति घाटी से जोड़े रखेगी। टनल को हिमालय के पीर पंजाल की पर्वत श्रृंखलाओं के बीच अत्याधुनिक विशिष्टताओं के साथ समुद्र तल से लगभग तीन हजार मीटर की ऊंचाई पर बनाया गया है। 

हिमाचल प्रदेश के रोहतांग में बना वर्ल्ड  में सबसे लंबा राजमार्ग टनल

शिमला। अटल टनल वर्ल्ड  में सबसे लंबी राजमार्ग टनल है। 9.02 लंबी सुरंग (टनल) मनाली को सालों भर लाहौल स्पीति घाटी से जोड़े रखेगी। यह टनल  हिमालय की पीर पंजाल श्रृंखला में औसत समुद्र तल से 10,000 फीट की ऊंचाई पर अति-आधुनिक विशिष्टताओं के साथ बनाई गई है। इस टनल से मनाली और लेह के बीच की दूरी 46 किलोमीटर कम हो जायेगी। सफर का टाइम भी चार से पांच घंटे कम हो जायेगा। अटल सुरंग को अधिकतम 80 किलोमीटर प्रति घंटे की गति के साथ प्रतिदिन 3000 कारों और 1500 ट्रकों के यातायात घनत्व के लिए डिजाइन किया गया है।पहले घाटी छह महीने तक भारी बर्फबारी के कारण शेष हिस्से से कटी रहती थी। 


अटल सुरंग को बनने में लगे हैं 10 साल
घोड़े की नाल जैसे आकार वाली यह टनल सिंगल ट्यूब डबल लेन वाली है। यह 10.5 मीटर चौड़ी है और मेन टनल के भीतर ही 3.6 x 2.25 मीटर की फायरप्रूफ इमर्जेंसी इग्रेस टनल बनाई टनल में पर डे 3,000 कारों और 1,500 ट्रकों का ट्रैफिक के अनुसार  बनाया गया है।

पांच-छह घंटों का सफर अब एक घंटे  में

मनाली-लेह हाइवे पर रोहतांग, बारालचा, लुंगालाचा ला और टालंग ला जैसे पास हैं। भारी बर्फबारी के चलते सर्दियों में यहां पहुंचना नामुमकिन हो जाता है। पहले मनाली से सिस्सू तक पहुंचने में पांच से छह घंटे लग जाते। अब यह दूरी सिर्फ एक घंटे में पूरी की जा सकती है। अटल टनल को बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन (BRO) ने बनाई है।
150 मीटर पर टेलीफोन कनेक्शन
अटल टनल में पहले और लास्ट 400 मीटर के लिए स्पीड लिमिट 40 किलोमीटर पर आवर फिक्स की गई है। शेष डिस्टेंस में गाड़ी 80 किलोमीटर पर आवर की स्पीड से चलाई जा सकती है। इस टनल के दोनों सिरों पर एंट्री बैरियर्स लगे होंगे। हर 150 मीटर पर इमर्जेंसी कम्युनिकेशन के लिए टेलीफोन कनेक्शंस हैं।

टेक्नीकल खूबियों से लैस

अटल टनल में हर 60 मीटर तक फायर हाइड्रेंट मैकेनिज्म है। इससे आग लगने की सूरत में उसपर जल्दी काबू पाया जा सकेगा। हर 250 मीटर तक सीसीटीवी कैमरों से लैस ऑटो इन्सिडेंट डिटेक्शन सिस्टम है। एक किलोमीटर पर हवा की मॉनिटरिंग की व्यवस्था है। 25 मीटर पर एग्जिट और इवैकुएशन के साइन हैं। पूरी टनल के लिए एक ब्रॉडकास्टिंग सिस्टम तैयार किया गया है।
अटल टनल रोहतांग 

1954 से ही चीन भारत के साथ युद्ध की तैयारी कर रहा था। उसने अपने नक्शों में इंडियन बोर्डर का काफी भाग अधिकार क्षेत्र में दिखाया था। इंडिया  की बोर्डर तक चीन ने पक्की सड़कों का निर्माण कर लिया था। इससे उसे सैन्य सामान तथा रसद पहुंचाने मे कोई कठिनाई नहीं हुई। इंडियन बोर्डर पर चीनी सैनिकों का जबर्दस्त जमाव था। युद्ध की दृष्टि से चीन की स्थिति सुदृढ़ थी। चीन पहाड़ी पर था, वह ऊंचाई से नीचे मौजूद इंडियन आर्मी पर प्रहार कर सकता था। भारत सरकार द्वारा 1962 में भारत और चीन युद्ध के दौरान मिली हार के कारणों को जानने की कोशिश की गई तो पता लगा कि हार का कारण चीनी सीमा पर भारतीय जवानों को रसद तथा समय पर सहायता हेतु और सैनिकों का न पहुंच पाना था।इसके बाद ऐसे रूट की कल्पना की गई थी जो समय पर रसद और सेना की पहुंच मनाली से लेह तक करवा सके। इसके बाद वर्ष 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान भी कारगिल की पहाडिय़ों पर पाकिस्तान के जवानों द्वारा श्रीनगर-लेह मार्ग पर गुजर रही सेना के वाहनों और जवानों को भारी नुकसान पहुंचाया गया। उस समय मनाली-लेह राष्ट्रीय राजमार्ग-तीन से आर्मी और रसद को लगभग 450 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती थी। जिससे न केवल अतिरिक्त समय गंवाना पड़ता था बल्कि शून्य से नीचे तापमान होने के चलते सेना को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था। इन सभी कठिनाईयों को देखते हुए मनाली और लाहुल के बीच रोहतांग में सुरंग बनाने का प्रारूप तैयार हुआ।

सुरंग को ऐसे मिला स्वरूप

पीएम अटल बिहार वाजपेयी के कार्यकाल वर्ष 2000 की तीन जून को रोहतांग दर्रे के नीचे रणनीतिक महत्व की सुरंग बनाये जाने का ऐतिहासिक फैसला लिया गया। सुरंग के दक्षिणी हिस्से को जोडऩे वाली सड़क की आधारशिला 26 मई, 2002 को रखी गई थी। वर्ष 1990 की मई में प्रोजेक्ट के लिए अध्ययन शुरू किया गया। सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के अधिकारियों के मुकी जून  में प्रोजेक्ट को लेकर भू-वैज्ञानिक रिपोर्ट पेश की गई। 2005 में सुरक्षा पर कैबिनेट कमेटी की स्वीकृति मिलने के बाद वर्ष 2007 में टेंडर निकाला गया। वर्ष 2006 दिसंबर में प्रोजेक्ट के डिजाइन और विशेष विवरण की रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया गया। वर्ष 2010 की जून में इस टनल के बनाने का काम शुरू कर दिया गया। इस टनल को वर्ष 2015 की फरवरी में  ही पूरा होना था, लेकिन विभिन्न कारणों से इसमें देरी होती रही। मौसम की जटिलता और पानी के कारण कई बार निर्माण कार्य बीच में ही रोकना पड़ा। टनल को बनाने के लिए खुदाई का काम वर्ष 2011 में ही शुरू हो गया।बीआरओ को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा। 
पहले वर्ष 2015 में इस प्रोजेक्ट की समय सीमा थी। बाधाओं और चुनौतियों के कारण यह समय सीमा आगे बढती रही। बीआरओ ने इस चुनौती का डटकर मुकाबला किया। इन चुनौतियों में निर्माण के दौरान सेरी नाला फॉल्ट जोन, जो लगभग 600 मीटर एरिया का सबसे कठिन स्ट्रेच शामिल था। यहां एक सैकेंड में 140 लीटर पानी निकलता था। ऐसे में निर्माण बहुत मुश्किल और चुनौतीपूर्ण था। सुरंग के दोनों सिरों का मिलान 15 अक्टूबर, 2017 में हुआ। शुरुआत में टनल की लंबाई 8.8 किलोमीटर नापी गई थी, लेकिन निर्माण कार्य पूरा होने के बाद अब इसकी पूरी लंबाई 9.02 किलोमीटर है। इसे बनाने में लगभग 3,000 कंट्रेक्ट स्टाफ और 650 रेगुलर स्टाफ ने 24 घंटे कई पारियों में काम किया।

लेह के लिए चार प्रस्तावित सुरंगे

रोहतांग के बाद अब बारालाचा दर्रा के नीचे 11.25, ला चुगला में 14.77 व तंगलंगला में 7.32 किलोमीटर लंबी सुरंगे बन रही हैं। इससे रोहतांग सुरंग से करीब 45 किलोमीटर, बारालाचा से 19, लाचुंगला से 31 और तंगलंगला से 24 किलोमीटर दूरी कम होगी। सभी सुरंगे बनने के बाद मनाली-लेह मार्ग की दूरी करीब 120 किलोमीटर कम हो जाएगी। इस समय मनाली से लेह पहुंचने के लिए 14 घंटे का समय लगता है। रोहतांग टनल दो घंटे का सफर कम करेगी। प्रस्तावित टनलों के बन जाने से लेह का सफर 10 घंटे का ही रह जाएगा। पूर्वी लद्दाख पहुंचने के लिए अब दो रास्ते होंगे। पहला रास्ता कुल्लू मनाली से लेह-लद्दाख के लिए होगा, जो इस सुरंग से जुड़ेगा। दूसरा श्रीनगर होकर जो जिला पास से जाने वाली सड़क के लिए होगा।  जोजिला पास से जाने वाली सड़क नवंबर से मई तक पूरी तरह बंद हो जाती है।