बिहार: मैं शेर का बेटा हूं...किसी से डरता नहीं,पिता के समय से ही LJP एलजेपी तोड़ने की साजिश लगे थे कुछ लोग: चिराग पासवान
लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) में फूट के बाद पहली बार बुधवार को चिराग पासवान ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चाचा पशुपति कुमार पारस के खिलाफ मोरचा खोलते अपना पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि मैं रामविलास पासवान का बेटा हूं. मैं शेर का बेटा हूं और किसी से डरता नहीं हूं। चिराग पासवान की लड़ाई आगे भी जारी रहेगी।
- पटना में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चिराग पासवान ने नीतीश कुमार और अपने चाचा पशुपति पारस पर लगाये आरोप
पटना। लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) में फूट के बाद पहली बार बुधवार को चिराग पासवान ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चाचा पशुपति कुमार पारस के खिलाफ मोरचा खोलते अपना पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि मैं रामविलास पासवान का बेटा हूं. मैं शेर का बेटा हूं और किसी से डरता नहीं हूं। चिराग पासवान की लड़ाई आगे भी जारी रहेगी।
चिराग ने कहा कि पिता राम विलास पासवान के रहते ही कुछ लोग उनकी पार्टी को तोड़ने में लग गये थे। इसको लेकर खुद राम विलास ने अपने भाई पशुपति कुमार पारस से पूछा भी था। यह सब तब भी हुआ जब उनके पिता आइसीयू में एडमिट थे। चुनाव से पहले जब पापा (रामविलास पासवान) एडमिट में थे तब भी जेडीयू के कुछ लोग मेरी एलजेपी को तोडने की कोशिश कर रहे थे। मुझे याद है जब पापा ICU में थे तब भी उन्होंने पार्टी के कुछ नेताओं से बातचीत में कहा था कि मीडिया में कुछ लोग इस तरह की भ्रामक खबरें आ रही हैं कि पार्टी टूट रही है। उन्होंने चाचा को भी इस संदर्भ में कहा था।
पार्टी के संविधान के अनुरूप नहीं चाचा का फैसला
चिराग ने कहा कि लोजपा संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष और राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से उनको हटाए जाने का फैसला पार्टी के संविधान के अनुरूप नहीं है। उन्होंने कहा कि वे इस मुद्दे पर लंबी लड़ाई लड़ने को तैयार हैं। उन्होंने कहा कि संसदीय बोर्ड में बदलाव का फैसला केवल संसदीय बोर्ड या राष्ट्रीय अध्यक्ष ही ले सकते हैं। लेकिन उनके चाचा पशुपति कुमार पारस ने ऐसा नहीं किया।चिराग ने कहा कि उन्होंने अपनी पार्टी और परिवार दोनों को बचाने का हरसंभव प्रयास किया। उनकी मां रीना पासवान भी लगातार इस कोशिश में लगी रहीं। उन्होंने लगातार चाचा पारस और अन्य सहयोगियों को आमंत्रित किया कि मिल बैठकर समस्याओं पर बात की जाए। उसका निदान निकाल लिया जाए। जब लगा कि यह अब संभव नहीं है, तब उन्होंने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई। सभी पांच बागी एमपी को पार्टी से बाहर करने का फैसला लिया गया।
चाचा पशुपति नाथ पारस पर अब इमोशनल अटैक, आज मैं अनाथ हो गया
चिराग पासवान ने खुद को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद और संसदीय दल के नेता की जिम्मेदारी से हटाए जाने का भी विरोध किया।
उन्होंने कहा कि सदन के नेता का चुनाव ससंदीय समिति का फैसला होता है। मौजूदा सांसद इस बारे में फैसला नहीं ले सकते। ऐसी खबरें हैं कि मुझे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से हटा दिया गया है। लेकिन पार्टी के संविधान के मुताबिक राष्ट्रीय अध्यक्ष तभी हट सकता है, जब उसकी मौत हो गई हो या फिर उसने खुद इस्तीफा दे दिया हो।यह सब कुछ एक साजिश के तहत किया गया है। उन्होंने कहा कि यह साजिश भी ऐसे वक्त में कई गई, जब मैं बीमार था। यहां तक कि मैंने अपने अंकल से संपर्क करने का भी प्रयास किया था, लेकिन बात नहीं हो सकी।
जेडीयू पर पार्टी को तोड़ने की कोशिश का आरोप
चिराग ने कहा कि जब मेरे पिता और एक अन्य चाचा की मौत हो गई तो अपने अंकल (पशुपति पारस) की ओर देख रहा था... मैं तब अनाथ नहीं हुआ था, जब मेरे पिता गुजर गए थे। लेकिन आज जो हुआ है, उससे मैं अनाथ हो गया हूं।' यही नहीं चिराग पासवान ने कहा बिहार चुनाव के दौरान भी पार्टी को तोड़ने की कोशिश की गई थी। चिराग पासवान ने कहा, 'बिहार चुनाव के दौरान, उससे पहले भी, उसके बाद भी कुछ लोगों द्वारा और खास तौर पर जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) द्वारा हमारी पार्टी को तोड़ने का प्रयास निरंतर किया जा रहा था।
चिराग ने कहा कि कि पार्टी में कुछ लोग (पशुपति पारस समेत पांच एमपी) संघर्ष के रास्ते पर चलने को तैयार नहीं थे। वो चाहते थे कि वे सुरक्षित राजनीति करते रहें। मैं इस बात को स्वीकार करता हूं कि अगर बीजेपी+जेडीयू+एलजेपी मिलकर बिहार चुनाव में उतरती तो लोकसभा चुनाव की तरह एकतरफा परिणाम आते। लेकिन उस परिणाम के लिए मुझे नीतीश कुमार के सामने नत्मस्तक होना पड़ता। उन्होंने कहा कि पिछले विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी हारी नहीं, बल्कि बड़ी जीत दर्ज की। उनकी पार्टी का वोट प्रतिशत पहले से काफी बढ़ा है। सीटें कम आईं जरूर, लेकिन लोजपा ने चुनाव में जीत के लिए अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया।
विधानसभा में चुनाव प्रचार से चाचा भागे
चिराग ने कहा कि पिछले विधानसभा चुनाव में उनके सामने कोई दूसरा विकल्प नहीं है। सीएम नीतीश कुमार की नीतियों से उनकी पार्टी सहमत नहीं थी। ऐसे में उनके साथ चुनाव लड़ना संभव नहीं था। यह जरूर है कि अगर लोजपा, एनडीए के साथ रहकर चुनाव लड़ी होती तो लोकसभा चुनाव की तरह ही राजद का पत्ता साफ हो जाता। लेकिन इसके लिए उन्हें नतमस्तक होना पड़ता।मैंने बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट विजन डॉक्यूमेंट बिहार के हर जिले से सुझाव लेकर तैयार किया था। उसे स्वीकारने से इनकार कर दिया गया। किसी भी गठबंधन में इस तरह से काम नहीं होता है। कॉमन मिनिमम प्रोग्राम से ही सरकारें बनती और चलती हैं। मुझे सात निश्चय पर भरोसा नहीं है। मैंने पार्टी के समर्थन से यह निर्णय लिया था।
उन्होंने कहा कि मेरे चाचा सहित जिन लोगों को संघर्ष की राजनीति नहीं करनी थी उन लोगों ने उस दौरान भी इसका विरोध किया था। मेरे चाचा ने चुनाव प्रचार में भी कोई भूमिका नहीं निभाई।मेरी पार्टी के कई एमपी अपने परिवार वालों को चुनाव जिताने में लगे थे। जिसमें वीणा देवी अपनी बेटी और महबूब अली कैसर के बेटे दूसरे गठबंधन से चुनाव में उतरे थे। जिस तरह से पूरे प्रदेश पार्टी के नेताओं की भूमिका होनी चाहिए थी, वैसी नहीं थी। इसलिए पूरी संभावना थी कि आज नहीं तो कल पार्टी में ये सवाल उठ सकते हैं। जब चुनाव समाप्त हुए तो कोरोना के चलते हमने कुछ दिनों के लिए तमाम राजनीतिक गतिविधियों पर रोक लगा दी