Swami Swaroopanand Saraswati passed away: शंकराचार्य स्‍वामी स्‍वरूपानंद सरस्‍वती का निधन

शंकराचार्य स्‍वामी स्‍वरूपानंद सरस्‍वती (99)  का रविवार को निधन हो गया। स्‍वामी स्‍वामी स्‍वरूपानंद सरस्‍वती दो पीठों (ज्‍योति‍र्मठ और द्वारका पीठ) के शंकराचार्य थे। स्‍वामी स्‍वरूपानंद सरस्‍वती लंबे समय से बीमार थे। उन्‍होंने मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के झोतेश्वर स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में अंतिम सांस ली।

Swami Swaroopanand Saraswati passed away: शंकराचार्य स्‍वामी स्‍वरूपानंद सरस्‍वती का निधन

नरसिंहपुर। शंकराचार्य स्‍वामी स्‍वरूपानंद सरस्‍वती (99)  का रविवार को निधन हो गया। स्‍वामी स्‍वामी स्‍वरूपानंद सरस्‍वती दो पीठों (ज्‍योति‍र्मठ और द्वारका पीठ) के शंकराचार्य थे। स्‍वामी स्‍वरूपानंद सरस्‍वती लंबे समय से बीमार थे। उन्‍होंने मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के झोतेश्वर स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में अंतिम सांस ली।

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सनातन धर्म की रक्षा के लिए आजीवन प्रयासरत रहे

स्‍वामी स्‍वरूपानंद सरस्‍वती सनातन धर्म की रक्षा के लिए आजीवन प्रयासरत रहे। वह अपनी बेबाक बयानी के लिए भी चर्चित थे। उनके निधन से संत समाज में शोक है।स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने राम मंदिर निर्माण के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। लंबे समय से बीमार चल रहे स्वामी स्‍वरूपानंद सरस्‍वती का बेंगलुरु में इलाज चल रहा था। ज्योर्तिमठ बद्रीनाथ और शारदा पीठ द्वारका के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती कुछ ही दिन पहले मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के झोतेश्वर स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में लौटे थे। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने आजादी की लड़ाई में हिस्‍सा लिया था और जेल भी गये थे।

दो सितंबर 1924 को मध्य प्रदेश सिवनी जिले में जबलपुर के पास दिघोरी गांव में हुआ था जन्म

स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म दो सितंबर 1924 को मध्य प्रदेश सिवनी जिले में जबलपुर के पास दिघोरी गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम धनपति उपाध्याय और माता का नाम गिरिजा देवी था। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के बचपन का नाम पोथीराम उपाध्याय था।ब्राह्मण परिवार में जन्में स्वरूपानंद सरस्वती ने कम उम्र में ही धार्मिक यात्राएं शुरू कर दी थी। शंकराचार्य स्‍वामी स्‍वरूपानंद सरस्‍वती का जन्‍म दो सितंबर 1924 को हुआ था। स्‍वामीजी ने मात्र नौ साल की उम्र में अपना घर छोड़ दिया था। 1980 में उन्‍हें शंकराचार्य की उपाधि मिली थी। वह धर्म के साथ राजनीतिक मुद्दों पर भी अपनी बेबाक राय रखने के लिए जाने जाते थे। एक्स सीएम दिग्विजय सिंह समेत अनेक सीनीयर लीडर उनके अनुयायी रहे हैं। वह ज्‍योति‍र्मठ और द्वारका पीठ के शंकराचार्य थे।  

सोमवार को शाम पांच बजे परमहंसी गंगा आश्रम में समाधि दी जायेगी

शंकराचार्य के शिष्य ब्रह्म विद्यानंद की ओर से दी की गई जानकारी के मुताबिक स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को सोमवार को शाम पांच बजे परमहंसी गंगा आश्रम में समाधि दी जायेगी। मात्र 19 साल की उम्र में स्‍वतंत्रता सेनानी के तौर पर उनकी ख्‍याति देशभर में फैल चुकी थी। वह क्रांतिकारी साधु के रूप में चर्चित हो गये थे। यह 1942 का दौर था जब देश अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई लड़ रहा था। शंकराचार्य स्वामी स्परूपानंद सरस्वती ने राम जन्मभूमि विवाद मामले में एक तल्‍ख बयान में बीजेपी और विश्‍व हिंदू परिषद पर निशाना साधा था। उनका कहना था कि कुछ संगठन अयोध्या में मंदिर के नाम पर अपना ऑफिस बनाना चाहते हैं जो हमें कतई मंजूर नहीं है। उन्‍होंने इस मुद्दे पर हो रही राजनीति की आलोचना की थी। साल 1950 में उन्‍हें दंडी संन्यासी और 1981 में शंकराचार्य की उपाधि मिली।
नौ साल की उम्र में घर छोड़ा, 19 साल की उम्र में कहलाए 'क्रांतिकारी साधु'
हिंदुओं के सबसे बड़े धर्मगुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का निधन होने से उनके शिष्यों में शोक की लहर है। बताया जाता है कि नौ साल की उम्र में उन्होंने अपना घर छोड़ा था। इसके बाद वो काशी पहुंचे। काशी में उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा हासिल की। एक बात यह भी है कि महज नौ साल की उम्र में घर छोड़ने वाले स्वरूपानंद सरस्वती 19 साल की उम्र में 'क्रांतिकारी साधु' भी कहे जाने लगे। जब 1942 में देश में अंग्रेज भारत छोड़े का नारा बुलंदियों पर था तब स्वरूपानंद सरस्वती भी देश की आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। उस वक्त उनकी उम्र महज 19 साल थी। उसी वक्त उन्हें क्रांतिकारी साधु भी कहा गया। स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय स्वरूपानंद सरस्वती को उन दिनों जेल में भी जाना पड़ा था। 

1940 में वे दंडी संन्यासी बनाये गये।,981 में शंकराचार्य की उपाधि मिली

उन्होंने वाराणसी की जेल में नौ और मध्य प्रदेश की जेल में छह महीने की सजा भी काटी है। वो करपात्री महाराज की राजनीतिक दल राम राज्य परिषद के अध्यक्ष भी थे। सन् 1940 में वे दंडी संन्यासी बनाये गये। उन्हें1981 में शंकराचार्य की उपाधि मिली।1950 में शारदा पीठ शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड-सन्यास की दीक्षा ली। इसके बाद स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से जाने जाने लगे। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के भक्त विदेश में भी हैं। बताया जाता है कि करीब 1300 साल पहले आदि गुरु भगवान शंकराचार्य ने हिंदुओं और धर्म के अनुयायी को संगठित करने और धर्म के उत्थान के लिए पूरे देश में 4 धार्मिक मठ बनाए थे। इन चार मठों में से एक के शंकराचार्य जगतगुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती थे, जिनके पास द्वारका मठ और ज्योतिर मठ दोनों थे।

कई मुद्दों पर रखते थे बेबाकी से राय

शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती अपनी बात बेबाकी से रखने के लिए भी जाने जाते थे। 2015 में उन्होंने आमिर खान की फिल्म पीके पर सवाल उठाए थे। उन्होंने मांग की थी कि सीबीआई को इस बात की जांच करनी चाहिए कि आखिर इस फिल्म को सर्टिफिकेट कैसे मिल गया जबकि सेंसर बोर्ड के अधिकांश सदस्यों ने मांग की थी कि इसकी समीक्षा फिर होनी चाहिए। शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने की वकालत भी की थी। उन्होंने कहा था कि आर्टिकल 370 हटने से घाटी के लोगों को काफी फायदा होगा। उन्होंने यह भी कहा था कि कश्मीर घाटी में हिंदुओं के लौटने से राज्य की देश विरोधी ताकतें कमजोर होंगी।

उत्तराखंड में गंगा नदी पर हाइड्रो प्रोजेक्टस का किया था विरोध 

यूनिफॉर्म सिविल लॉ की वकालत करने वाले शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने उत्तराखंड में गंगा नदी पर हाइड्रो प्रोजेक्टस का विरोध भी किया था। अहमदनगर में स्थित भगवान शनि के मंदिर शनि शिंगणापुर में महिलाओं के प्रवेश के खिलाफ भी थे। इसके अलावा आरएसएस पर दिया गया उनका एक बयान काफी चर्चा में रहा था। मार्च 2016 में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिंदुओं का नाम जरूर लेता है, लेकिन हिंदुत्व के प्रति संघ की कोई जिम्मेदारी नहीं है। आरएसएस लोगों को यह कहकर धोखा देता है कि वे हिंदुओं की रक्षा कर रहे हैं। यह अधिक खतरनाक है।